जो लाता है गंगा की परबी की बेला, ककोड़ा का मेला, ककोड़ा का मेला

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जो लाता है गंगा की परबी की बेला, ककोड़ा का मेला, ककोड़ा का मेला

Tuesday, 4 November 2025 | November 04, 2025 Last Updated 2025-11-05T05:14:02Z
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जो लाता है गंगा की परबी की बेला, ककोड़ा का मेला, ककोड़ा का मेला
बदायूं ! यूं तो मिनी कुंभ कहलाने बाला जनपद बदायूं का ककोड़ा मेला 01 नवंबर को झंडी पहुंचने के बाद आरंभ हो जाता है इसमें मुख्य स्नान पर्व 05 नवंबर को होगा लेकिन "ककोड़ा मेला" आते ही ये लाइन याद आती हैं जो लिखी हैं हमारे शहर के हास्य व्यंग्य के विख्यात कवि शमशेर बहादुर "आँचल जी" ने, उन्होंने अपनी पुस्तक "मेला ककोड़ा दर्शन" में मेले का पूरा इतिहास लिखा है-जैसे ये मेला कब लगा, किसने लगवाया, कहा लगता है, क्यों लगता, और सबसे बड़ी बात इस मेले में कहा पर क्या होता है !उन्होंने काव्यात्मक तरह से लिखा है कि..
इसी देश में एक "बदायूं" जिला है, कि वेदों से जिसका रहा सिलसिला है"
"इसी के निकट शेखूपुर नाम धारे, बसा गांव है इक नदी के किनारे"
"इसी गांव के थे इक नब्बाबे आला, उन्ही का मैं देते हुए कुछ हवाला"
"बढ़ाता हूँ किस्सा सुनो थोड़ा-थोड़ा, लगा कैसे आखिर ये मेला ककोड़ा" ??
कवि "आंचल" ने लिखा है कि नबाब साहब को कुष्ठ रोग हो गया था-
"गरज जहर खा करके मरने की ठानी, लगा रोग जिसमे वो क्या जिन्दगानी" ??
"कोई वैध अत्तार छोड़ा नहीं था, कि जिस्से के संपर्क जोड़ा नहीं था"
"हुआ स्वप्न गंगा किनारे पे जायें , वहीं डालें डेरा, पिये जल, नहाए"
"अगर गंगा माँ से यह नाता रहेगा, तो तय समझो यह रोग जाता रहेगा"
"आंचल" जी आगे लिखते हैं कि-
सत्तरह सौ अढ़सठ की सन रास आई , न भूले से बीमारी फिर पास आई !
इस तरह "आँचल जी" अपनी लेखनी को आगे बढ़ाते चले गये और इस पुस्तक को पढ़ने वाले लोगो को मेले के इतिहास और भूगोल से परीचित कराते हुए कहते हैं कि
जो पहुंची ककोड़े निजी जीप काली।
दिखी हमको, बाई तरफ कोतवाली ।।
 इधर हॉस्पिटल, उधर डाकखाना।
 दिखा हमको मोटर का अड्डा पुराना ।।
दुका वैध जी ,की उबलते सिंघाड़े।
यह शक्कर के गोले ,भागने को जाड़े ।।
"आँचल जी" की इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मेला ककोड़ा का इतिहास जानने के बाद मेले में घूमने जैसी अनुभूति प्राप्त होती है!
कवि"आँचल जी" मेले में प्रतिबर्ष अपना "नि:स्वार्थ सेवा शिविर" (कैम्प) भी लगाते हैं और गंगा किनारे लगभग 30 वर्षो से "रैन बसेरा" भी लगाते हैं जिसमे हर बर्ष इस पुस्तक की 'दो हजार प्रतियाँ " निशुल्क वितरित की जाती हैं !
"रैन बसेरे" में जल एवं प्रकाश के साथ साथ जरुरतमंदो को चाय खाने की व्यवस्था भी रहती है !
पुस्तक का अंत गंगा माँ की आरती से होता है 
भंवर के बीच में नैया है, मेरी पार तो कर।
मेरा उद्धार तो कर मां, मेरा उद्धार तो कर।।



 Adv Anirudh Ray Saxena
Media prabhari